अब तेरे इस दुनिया से मैं, पहले जाना चाहता हूं।
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बरसों काम के ख़ातिर जब मैं, हुआ शहर से लापता,
हफ़्तों में सिर्फ़ एक ही दिन मैं, अपने घर को आ पाता।
परिवार उस एक दिन का, मुद्दतों राह तक़ते थे।
मानो रोकना चाहते हों पर रोक नहीं वो सकते थे।।
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घर की ज़िम्मेदारियों में, मैं कुछ यूं मश्ग़ूल रहा।
कि अपनी मां को, अपना वक़्त भी न दे सका।
उनके आख़िरी पल में उनके, साथ मैं न रह सका।
उनके बाद मेरा क्या होगा, ये तलक़ न कह सका।
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जाने क्या ख़ता थी मेरी, ऐसी भी क्या भूल हुई,
जाने क्यूं वो सदा के लिए, मुझसे रूठ यूं चली गई।
बहुत कुछ है कहने को, दिल खोलके रोना चाहता हूं।
हे ऊपरवाले!
अब तेरे इस दुनिया से मैं, पहले जाना चाहता हूं।
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अब तो पापा आप ही हो, जिनको मैं सब कुछ मान सकूं।
आपके लाड़–दुलार में दोनों, पापा और मां को जान सकूं।।
घर वापिस आकर जितना भी वक़्त, आपके साथ बिताया है,
लड़ना–झगड़ना, रूठना–मनाना, बे–वजह खुद को सताया है।
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अरमान बहुत हैं आपकी हर ख़्वाहिश वो भरपूर करे।
एक दूजे के दिल में सारे, गिले–शिकवे को दूर करे।।
जाने कितनी और बची है, जिंदगी ये चंद लम्हों की।
ज़िम्मेदारी ख़त्म हो अपनी, फ़िर सांसे वो चूर करे।।
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जो भी पल मस्ती में गुज़रे, उनको दोहराना चाहता हूं।
सदा के लिए इन यादों को, दिल में संजोना चाहता हूं।।
मां को तो खो दिया पर आपको, नहीं में खोना चाहता हूं।
इसीलिए इस दुनिया से पापा, मैं पहले जाना चाहता हूं।
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हे ऊपरवाले! मैं एक दुआ करना चाहता हूं।
अब तेरे इस दुनिया से मैं, पहले जाना चाहता हूं।।