कहते हैं लोग कि- वो ख़ुदा ! जब हर जगह नहीं रह सकता।
तो माँ-और-बाप बनाकर हमको, उसने अपना दिया पता।।
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बड़ा एहम क़िरदार है इनका, इस अधूरे जीवन में।
ग़र माँ खड़ी हर मुश्क़िल में, तो पिता साथ हर उलझन में।।
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माँ ने अपना दूध पिलाकर, लोरी से हमें सुलाया है।
पिता हमारी भूख छीनकर, निवाला भर-पेट खिलाया है।।
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ग़र माँ की उंगली थामे हमने, अपना पहला क़दम बढ़ाया है।
तो पिता ने हमको कंधा देकर, इस दुनिया से तारुफ़ करवाया है।।
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ग़र माँ ने अपने आँचल से हमारे, चेहरे की हर शिक़न को पोंछा है।
तो पिता ने अपने ख़ून-पसीने से, हमारी हर ख़ुशियों को सींचा है।।
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ग़र फ़ूल बनकर माँ ने सबकी, ज़िन्दगी में ख़ुश्बुएं बिख़ेरी हैं।
तो काँटे बनकर बग़िया में दी, उस पिता ने अपनी ज़िन्दगी है।।
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माँ को देवी, माँ को शक्ति, कई रूप उनके बतलाते हैं।
पर नहीं पिता की कोई शख़्सियत, हम कभी उनका फरमाते हैं।।
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नहीं ख़ूबियाँ ये तो कुछ भी, माँ-और-पिता पर कहने को।
काग़ज़ में क़ोरा, क़लम में स्याही, कम पड़ जाएँ ग़र लिखने को।।
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