आख़िर कितने बड़े हो गए हैं हम...

स्कूल जाने में पहली बार जो कभी डरते थे हम,
आज अकेले ही सारी दुनिया घूम लेते हैं हम। 
सफ़र के काँटों को यूं ही चुम लेते हैं हम।
और काँटों के इस अंजुमन नशे में,
साक़ी थोड़ा झूम लेते हैं हम।। 
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पढ़ाई के लिए पहले जाकर जो कभी पढ़ते थे हम,
स्टाइल दिखाने को आज फ़िराक़ में रहते हैं हम। 
छोटी सी चोट लगने पर जो कभी रो दिया करते थे,
दिल टूट जाने पर भी आज संभल जाते हैं हम।। 
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रहे कभी जिन दोस्तों के इरादों में हम,
वो आज रहते हैं अपनी ही धुन में मगन। 
रूठकर मनाने से जो फिर घुल-मिल जाते थे कभी ,
आज एक बार जुदा क्या हुए, के 
रिश्तों की एहमियत भूल जाते हैं हम।। 
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ज़िन्दगी के इस तूफ़ानी रफ़्तार में। 
जाने अपना बचपन कहाँ छोड़ आये हैं हम।। 

चेहरा अपना जब देखते हैं आज आईने में हम। 
अफ़सोस ! आंखें हमारी हो जाती हैं उदासी में नम ।। 
और इसी अफ़सोस में एह्सास ये होता है हमें कि। 
सच में ! आख़िर कितने बड़े हो गए हैं हम... 

आख़िर कितने बड़े हो गए हैं हम...।। 
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